उज्जैन के जिस महाकालेश्वर मंदिर को अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने महाकाल लोक कोरिडोर की सौगात दी है, उसका इतिहास अति गौरवशाली, भव्य और अनुपम, अनूठा और अद्वितीय है। हिंदू के अन्य धार्मिक स्थलों की तरह ही यह महास्थल भी मुस्लिम शासकों के अत्याचार का शिकार हुआ था। उज्जैन के जिस महाकालेश्वर मंदिर को अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने महाकाल लोक कोरिडोर की सौगात दी है, उसका इतिहास अति गौरवशाली, भव्य, अनुपम, अनूठा और अद्वितीय है। हिंदू के अन्य धार्मिक स्थलों की तरह ही यह महास्थल भी मुस्लिम शासकों के अत्याचार का शिकार हुआ था, लेकिन इसके बावजूद श्रीमहाकालेश्वर का बाल बांका तक नहीं हुआ। यही वजह है कि उज्जैन के बाबा महाकाल सबकी रक्षा करते हुए आज भी अक्षुण खड़े हैं। महाकालेश्वर मंदिर भारत ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के लिए आस्था का सबसे बड़ा केंद्र है। श्रीमहाकाल को कालों का भी काल कहा जाता है।

25 लाख वर्ष पहले महाकाल मंदिर की हुई स्थापना
महाकाल मंदिर की स्थापना का इतिहास आप को गर्व की अनुभूति से आनंदित कर देगा। पौराणिक साक्ष्यों के अनुसार मध्यप्रदेश की अध्यात्मिक नगरी उज्जैन के महाकाल मंदिर की स्थापना आज के करीब 25 लाख वर्ष पहले हुई थी। यानि धरती पर तब प्री-हिस्टोरिक पीरियड पूर्व-ऐतिहासिक काल चल रहा था। प्री-हिस्टोरिक पीरियड आज से 2.5 से 3.0 मिलियन वर्ष पहले अस्तित्व में था। इसी दौरान प्रजापिता ब्रह्माजी ने स्वयं धरती पर आकर श्रीमहाकलेश्वर धाम की स्थापना की थी। इससे महाकालेश्वर मंदिर की महिमा और महात्म्य का अंदाजा लगाया जा सकता है। श्रीमहाकालेश्वर मंदिर की वेबसाइट पर भी प्री-हिस्टोरिक पीरियड में श्री ब्रह्माजी द्वारा महाकाल मंदिर की स्थापना किए जाने का जिक्र है। इसके लिए पौराणिक साक्ष्यों का हवाला भी दिया गया है।
गुप्तकाल से पहले लकड़ी के खंभों पर टिका था महाकाल दरबार
छठी शताब्दी ई. में इस बात का उल्लेख है कि महाकाल मंदिर की कानून व्यवस्था और उसकी देखभाल के लिए राजा चंदा प्रद्योत ने प्रिंसा कुमारसेन की नियुक्ति की थी। महाकाल मंदिर में तीसरी-चौथी ई.पूर्व के कुछ सिक्के भी मिले थे, जिन पर भगवान शिव महाकाल की आकृति बनी थी। कई प्राचीन भारतीय महाकाव्य ग्रंथों में भी महाकाल मंदिर का उल्लेख मिलता है। इन ग्रंथों के अनुसार मंदिर बहुत ही शानदार और भव्य था। इसकी नींव और चबूतरे को पत्थरों से बनाया गया था और मंदिर लकड़ी के खंभों पर टिका था। गुप्त काल से पहले यहां कि मंदिरों पर कोई शिखर नहीं थे। मंदिरों की छतें ज्यादातर सपाट थीं। संभवतः इसी कारण से रघुवंशम में कालिदास ने इस मंदिर को ‘निकेतन’ कहा है। मंदिर के पास ही तत्कालीन राजा का महल था।
मराठा शासकों ने मंदिर को किया और भव्य
अठारहवीं सदी के चौथे दशक में उज्जैन में मराठा शासन स्थापित किया गया था। उज्जैन का प्रशासन पेशवा बाजीराव-प्रथम द्वारा अपने वफादार सेनापति रानोजी शिंदे को सौंपा गया था। रानोजी के दीवान सुखानाकर रामचंद्र बाबा शेनवी थे जो बहुत अमीर थे, लेकिन दुर्भाग्य से निर्दयी थे। इसलिए कई विद्वान पंडितों और शुभचिंतकों के सुझावों पर, उन्होंने अपनी संपत्ति को धार्मिक उद्देश्यों के लिए निवेश करने का फैसला किया। इस सिलसिले में उन्होंने अठारहवीं सदी के चौथे-पांचवें दशक के दौरान उज्जैन में प्रसिद्ध महाकाल मंदिर का पुनर्निर्माण किया। इसके बाद राजा भोज ने इस मंदिर को और भव्यता दी। इससे पहले मराठों के शासन काल में महाकाल मंदिर का पुनर्निर्माण से लेकर ज्योतिर्गलिंग की पुनः स्थापना और सिंहस्थ पर्व स्नान की स्थापना की गई।