पढ़ाई के प्रति अपने रुझान के बारे में इंद्रा बताती है कि काफी पहले ‘बचपन बचाओ आंदोलन’ वालों ने मुंबई में मजदूरी कर रहे इस गांव के 5 बच्चों को मुक्त कराया था. वे लोग उन पांचों बच्चों को लेकर गांव आए थे. उनलोगों ने उन्हें शिक्षा से जोड़ने की कोशिश की थी. इसी दौरान इंद्रा भी बचपन बचाओ आंदोलन वालों के संपर्क में आ गई. उनलोगों ने इंद्रा को भी प्रेरित किया. नतीजा आज सामने है.
भारत में कोई गांव ऐसा भी हो सकता है जहां किसी ने मैट्रिक की पढ़ाई नहीं की होगी.
आज के वक्त में क्या आपको लगता है कि भारत में कोई गांव ऐसा भी हो सकता है जहां किसी ने मैट्रिक तक की पढ़ाई नहीं की होगी. नहीं न! लेकिन यह दुखद है कि देश में कई गांव ऐसे हैं. लेकिन इसी दुख के बीच से कई बार सुखद खबरें भी निकल कर आती हैं. देश के चर्चित राज्य बिहार में एक गांव है दुबे टोला. नाम के विपरीत यह गांव महादलितों का है. यहां बने ढाई सौ घरों में लगभग 1000 लोग रहते हैं. इन 1000 लोगों में तकरीबन 900 लोग मुसहर जाति के हैं, सिर्फ 100 लोग ही शर्मा, यादव और अन्य जाति के हैं. इस गांव में शिक्षा का आलम ऐसा रहा है कि यहां का कोई शख्स मैट्रिक की परीक्षा में नहीं बैठा है. लेकिन, अब इस सीमा को लांघते हुए महादलित परिवार की बच्ची इंद्रा ने मैट्रिक की परीक्षा दी है. फिलहाल उसके हौसले बुलंद हैं और वह अपने समाज और गांव की किस्मत बदलने की जिद पकड़े हुए उमंग में डूबी है.
ये बच्ची गांव में शिक्षा का अलख जगा रही है.
समाज मे व्याप्त बुराइयों को जड़ से खत्म करने का अभियान उसने छेड़ रखा है. वह कहती है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भी सपना है ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’. हमारे मुख्यमंत्री भी दहेज प्रथा के खिलाफ समाज को जागरूक करने के लिए लगातार संवाद यात्रा चला रहे हैं. ऐसे में मैं भी सीतामढ़ी के दुबे टोल की ओर से मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री के सपनों को साकार करने मे जुटी हुई हूं.