दोस्तों आज हम एक ऐसी महिला शख्स के बारें में बात करेंगे जिसने अपनी सुरीली आवाज़ के दम पर न केवल भारत में बल्कि दुनिया के हर कोने में अपनी पहचान बनायीं। लेकिन वो कुछ दिन पहले ही कोरोना पॉजिटिव हुई थी और अस्पताल में भर्ती थी। लेकिन वो कोरोना से लड़ न सकी और इनका कोरोना के कारण निधन हो गया। लोग उन्हें उनके टैलेंट के कारण क्वीन ऑफ़ मेलोडी, वौइस् ऑफ़ दी नेशन और वौइस् ऑफ़ दी मिलेनियम जैसे कई अलग अलग नामो से भी बुलाते है। जी हा दोस्तों हम बात कर रहे है अपने गानो से लोगो के दिलो पर राज़ करने वाली भारतीय सिंगर लता मंगेशकर की जिनके गाने हम सभी ने सुने ही होंगे।

हलाकि हम लता जी को बतौर एक सिंगर तो जानते ही है लेकिन बोहत कम लोगो को उनकी ज़िन्दगी की कहानी और उनकी सफलता के पीछे की मेहनत का पता होगा। लता मंगेशकर का जन्म 28 सितम्बर 1929 में हुआ था मध्य प्रदेश के इंदौर में हुआ था। उनके पिता का नाम दीनानाथ मंगेशकर था जो कि एक गायक और थिएटर एक्टर थे। उनकी माँ का नाम शेवंती मंगेशकर था। दोस्तों लता मंगेशकर का सुरुवात में नाम हेमा रक्खा गया था लेकिन बाद में चलकर उनके पिता ने उनका नाम अपने प्ले के किरदार लतिका के नाम पर लता रख दिया।
लता जबसे 5 साल की थी, तभी से उन्होंने अपने पिता के एक नाटक के लिए बतौर एक एक्ट्रेस काम करना शुरू कर दिया और बचपन में स्कूल के समय से ही उन्होंने गाने का अभ्यास करना शुरू कर दिया था। यहाँ तक कि वो अपने घर पर अपने पिता से गाना सीखती थी। स्कूल में जाकर वो बच्चो को सिखाती थी लेकिन एक दिन स्कूल के टीचर ने इसके लिए खूब फटकार लगाई और तभी से लता मंगेशकर ने स्कूल जाना ही बंद कर दिया।
और अक्सर अपनी छोटी सी उम्र से ही लता अपने शिष्यों को उनकी गलतियों को पकड़कर उन्हें सही सुर बताती थी। यही सब देखकर उनके पिता जान चुके थे कि ये हीररा तो उनके घर में ही है और उन्होंने तभी लता को भी अच्छी तरह से ट्रेनिंग दिलानी शुरू कर दी। हलाकि जब लता सिर्फ 13 साल की थी तो दिल की बिमारी की वजह से उनके पिता का दिहांत हो गया था और उस समय मानो तो उनके परिवार पर दुखो का पहाड़ टूट पड़ा। अपने पिता के दिहंत के बाद घर की सारी ज़िम्मेदारी उनके ऊपर आ गयी क्युकी वो घर में सबसे बड़ी थी।
और इस मुश्किल समय में लता के पिता के मास्टर विनायक ने उनके परिवार की खूब मदद करी। उन्होंने ही लता को एक बतौर सिंगर करियर शुरू करने में मदद करी। लता जी ने पहली बार एक मराठी फिल्म के लिए गाना गाया लेकिन अफ़सोस से ये उनका गाना फाइनल कट में जगह नहीं बना पाया। हलाकि अभी भी लता मंगेशके जी ने निराश न होकर अपनी प्रैक्टिस जारी रक्खी और फिर 1952 में पहली बार उनके एक गाने की पहेली मंगलगवार नाम के एक मराठी में सुनी गयी और अगले ही साल उन्होंने एक हिंदी गाना भी गया जिसके बोल थे माता एक सपूत की दुनिया बदल देतू।
लता जी ने अपनी प्रतिभा को बढ़ाने के लिए उस्ताद अमां अली खान से तलीन भी ली हलाकि इसी बीच उनके सबसे बड़े सहयोगी विनायक की भी मृत्यु हो गयी। अब आगे शिक्षक के तौर पर घुलम हैदर से म्यूजिक सीखा और फिर उन्होंने ही लता को सशधर मुखर्जी नाम के प्रोडूसर से मिलवाया जिन्होंने लता की आवाज़ को ये कहकर नकार दिया कि ये बोहोत ही पतली है।
और उनका ये कहने पर गुलाम हैदर काफी गुस्सा हो गए। उन्होंने गुस्से में ही कहा कि मुखर्जी साहब आप देखलेना सारे प्रोडूसर्स और डायरेक्टर्स एक दिन लता के पैरो में गिर कर उनसे उनकी फिल्मो में गाने की भीक मांगेंगे। और फिर लता मगेशकर जी को उनके गाने की सबसे बड़ी सफलता मिली जब उन्होंने 1948 में जब उन्होंने मजबूर फिल्म का एक गाना गाया जिसके बोल थे “दिल मेरा तोडा मुझे कही का नहीं छोड़ा”।
ये गाना पूरे भारत में बोहत बड़ा हिट साबित हुआ। उसके बाद म्यूजिक डायरेक्टर्स उनके साथ काम करने का सपना देखते थे और फिर आगे चलकर लता ने शंकर, नाशाद अली, SD बरमन, अमर नाथ और भगत लाल जैसे बड़े बड़े म्यूजिक डायरेक्टर्स के साथ काम किया और अपनी आवाज़ से उन्होंने बोहत जल्द लोगो के दिलो में अपने लिए जगह बना ली।