April 1, 2023

फिल्म RRR के कोमराम भीम असल ज़िन्दगी में कौन थे ? जूनियर NTR ने दिखाई क्रांतिकारी की सच्चाई

SS राजमौली की फिल्म RRR ने पूरी दुनिया में तेहेलका मचा दिया है लेकिन एक बात जो बहुत हैरान करती है कि लोग आज भी दो गुमनाम क्रांतिकारियों अलूरी सीताराम राजू और कोमाराम भीम के बारें में बहुत कम जानते है। पहले समझते है कि कौन थे कोमराम भीम, क्युकी कोमराम भीम का जो किरदार है वो जूनियर NTR ने इस फिल्म में निभाया है। अब जानेंगे कि कोमराम भीम असल में कौन थे। कौमारं भीम का जन्म 22 अक्टूबर 1901 को अदलाबाद जिले के संकपाली गांव में एक गोंड आदिवासी जनजाति में हुआ था। उनके पिता का नाम कोमराम चिन्नू और माता का नाम सोमबाई था।

गरीब परिवार में जन्म लेने के कारण उन्हें शिक्षा नहीं मिल पाई। बाकी गोंड जनजाति के लोगो की तरह बाहरी दुनिया से वो हमेशा दूर रहे। बचपन से ही उन्होंने ज़मीदार और व्यापारियों से अपने लोगो का शोषण होते हुए देखा और साथ ही ये देखा कि जीने के लिए संघर्ष होना कितना ज़रूरी है। बड़े होते-होते उन्होंने अपने लोगो पर होती अन्याय पूर्ण होती प्रथाओं को भी देखा, अपने लोगो का दुःख देखकर उनके अंदर विद्रोह की ज्वाला फूटी।

कहा जाता है कि कोमराम भीम शहीद भगत सिंह से काफी प्रेरित थे जिन्होंने अपनी मात्रभूमि के लिए अपने प्राणो की आभूति दे दी थी। साथ ही अन्य गुण नेताओ से भी जिन्होंने अपने लोगो के लिए बलिदान दिया। इसी प्रेरणा से उन्होंने जल जंगल ज़मीन का नारा दिया। जिसका अर्थ है कि जंगलो में रहने वाले लोगो को सभी वन संसाधनों पर पूर्ण अधिकार होना चाहिए। कोमराम भीम की एक गोरिल्ला आर्मी भी थी। जी हां एक क्रांतिकारी नेता के रूप में कोमराम भीम ने अदिव्वासियो की स्वतंत्रता के लिए असावचाहि राजवंश के खिलाफ जंग छेद दी थी।

ऐसा कहा जाता है कि आदिवासियों के लिए जब उनके पिता ने आवाज़ उठायी थी तो उनकी हत्या कर दी गयी थी। तो ऐसा कहा जाता है कि एक बार निजाम का एक पाटदार सिद्दकी टैक्स के लिए आदिवासियों को तंग कर रहा था, जब बात बहुत बढ़ गई तो भीम के हातो सिद्दकी की मौत हो गई। इसकी वजह से भीम को भागना पड़ा था। वह से भागकर वो असम के चाय बागानों में काम करने लगे थे। वहां भी उन्होंने मज़दूरों के हक़ के लिए आवाज़ उठायी लेकिन इस वजह से उन्हें जेल में दाल दिया गया था।

जेल से छूटे तो वो वापस अपने लोगो के पास आ गए और अपनी गोरिल्ला आर्मी के साथ निजाम के खिलाफ लड़ते रहे। निजाम के खिलाफ उनका गोरिल्ला युद्ध 1928 से 1940 तक चलता रहा। वही जब निजाम को लगा कि भीम के विद्रोह बढ़ते जा रहे है तो उन्होंने अपने खिलाफ विद्रोह को शांत करने के लिए अपना एक दूध भेजा। लेकिन भीम ने किसी भी तरह की बातचीत करने से मना कर दिया। इसके बाद निजाम ने अपने सैनिको की टुकड़ी विद्रोहियों को मारने के लिए भेज दी। इस लड़ाई में कोमराम भीम अपने साथियों के साथ शहीद हो गए।

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