जेल में 5 साल आतंकवादी के तौर पर बिताने के बाद बरेली कोर्ट ने चांद मोहम्मद को बरी कर दिया. दरअसल, चांद के खिलाफ जो लिखे हुए नक्शे लिटरेचर पुलिस ने कोर्ट को सबूत के तौर पर दिखाए थे, उनको लेकर कोर्ट ने पाया कि चांद मोहम्मद पढ़ लिख ही नहीं सकते बल्कि वे अनपढ़ है. अब पुलिस ने दावों को खारिज करते हुए उन्हें बरी कर दिया गया है.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एक कर्मचारी जिसे अनुशासनात्मक जांच के आधार पर सर्विस से बर्खास्त कर दिया गया था, उसे केवल इसलिए बहाल नहीं किया जा सकता क्योंकि उसे एक आपराधिक अदालत ने उसी तरह के आरोपों और तथ्यों पर संदेह का लाभ देकर बरी कर दिया है।

जस्टिस एस रवींद्र भट और जस्टिस सुधांशु धूलिया की पीठ ने कहा, केवल इसलिए कि एक व्यक्ति को आपराधिक मुकदमे में बरी कर दिया गया है, उसे सर्विस में फिर से बहाल नहीं किया जा सकता है।
मामला
फूल सिंह राजस्थान पुलिस सेवा में कांस्टेबल के रूप में नियुक्त किए गए थे। उनके खिलाफ एक विभागीय कार्यवाही शुरू की गई, जिसमें आरोप लगाया गया कि (1) उन्होंने शराब का सेवन किया था (2) एक व्यक्ति के साथ अभद्रता की और उससे 100/- रुपये रिश्वत की मांग की थी, (3) लोगों पर गोली चलाई, जो उनका पीछा कर रहे थे।
उनके खिलाफ तीनों आरोप साबित हो गए कि उन्हें सर्विस से बर्खास्त कर दिया गया। इस संबंध में उनके खिलाफ धारा 392, 307 आईपीसी और पुलिस अधिनियम की धारा 34 के साथ शस्त्र अधिनियम की धारा 3/25 के तहत एफआईआर भी दर्ज की गई।
हालांकि ट्रायल कोर्ट ने उन्हें दोषी ठहराया, लेकिन अपीलीय अदालत ने उनकी अपील को अनुमति दी और संदेह का लाभ देते हुए उन्हें बरी कर दिया।
बरी होने के बाद, उन्होंने अपनी बहाली के लिए अधिकारियों के समक्ष एक आवेदन दिया। चूंकि अधिकारियों ने अनुकूल प्रतिक्रिया नहीं दी, इसलिए उन्होंने एक रिट याचिका दायर की। राजस्थान हाईकोर्ट ने बरी होने के फैसले पर संज्ञान लेते हुए उनकी याचिका स्वीकार की ली और उन्हें बहाल करने का निर्देश दिया।
राज्य की ओर से दायर अपील में यह मुद्दा उठाया गया कि चूंकि अब उन्हें आपराधिक अदालत ने बरी कर दिया है तो क्या उन्हें सर्विस में बहाल किया जा सकता है?
बेंच ने सबसे पहले कैप्टन एम पॉल एंथोनी बनाम भारत गोल्ड माइंस लिमिटेड और अन्य (1999) 3 SCC 679 के फैसले को नोट किया, जिस पर हाईकोर्ट ने आक्षेपित निर्णय में भरोसा किया था।
अदालत ने यह भी कहा कि बड़ी संख्या में ऐसे मामले हैं जहां यह लगातार माना गया है कि दो कार्यवाहियां, यानी आपराधिक और विभागीय, पूरी तरह से अलग हैं और केवल इसलिए कि आपराधिक मुकदमे में बरी कर दिया गया है, सर्विस में बहाली का आधार नहीं होगी, जब विभागीय कार्यवाही में दोषी पाया गया है।